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जागा हुआ कौन ?

ByRamkishun Bharadwaj

Oct 26, 2024

महात्मा जड़ भरत जी एवं राजा रहूगण संवाद

“गुणानुरक्तं व्यसनाय जन्तोः क्षेमाय नैर्गुण्यमथो मनः स्यात्” भा. 5/11/8

विषयासक्त मन जीव को सांसारिक संकट में फँसाता है और वही मन विषय रहित होने पर जीव को शान्तिमय मोक्ष की प्राप्ति कराता है।मनुष्य का मन जो विषयासक्त हो जाए तो वह सांसारिक दुःख दाता बन जाता है,वही मन विषयासक्त होने के बदले यदि ईश्वर भजन में लीन हो जाय तो मोक्षदाता बन जाता है। विषयों का चिंतन करता हुआ मन उसमें फँस जाता है , तो उसका बंधन आत्मा अपने में मान लेती है , स्वयं पर आरोपित कर लेती है,यह सब मन की दुष्टता है, अतः मन को परमात्मा मे स्थिर करना चाहिए। महात्मा जड़भरत जी सिन्धु देश के राजा रहूगण से कहते है – हे राजन ! तुम मुझसे पूछते हो कि मै कौन हूँ ? किन्तु तुम स्वयं से पूछो कि तुम कौन हो ? तुम शुद्ध आत्मा हो , जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं का साक्षी आत्मा है, ज्ञानी जन जगत को सत्य नहीं मानते, संसार को वे मनः कल्पित मानते हैं, जगत स्वप्न जैसा है, जिस प्रकार स्वप्न मिथ्या होने पर भी मनुष्य को रुलाता है , उसी प्रकार जगत भी मनुष्य को जीव को रुलाता है। जैसे एक मनुष्य सो जाने पर स्वप्न देखता है कि एक भयानक शेर हमला करने वाला है , तो वह मनुष्य डर जाता है कि शेर मुझे खा जायेगा, ऐसा सोचकर वह चिल्लाने और रोने लगता है , तब किसी के जगाने पर वह देखता है कि वह तो सपना था और सपने के शेर से ही वह डर गया था। किन्तु स्वप्न असत्य है , यह मनुष्य की समझ में कब आता है ? केवल तब कि जब वह जाग जाता है ।कौन सा व्यक्ति जागा हुआ है?विषयों से जिसका मन हट गया है , छूट गया है , वही जागा हुआ है, तुलसी दास ने भी कहा है -“जानिय तबहि जीव जग जागा।जब सब विषय विलास विरागा।।” ये सब मन के खेल हैं,मन को शुद्ध करने हेतु संत समागम करना चाहिए, महापुरुषों की सेवा से ब्रह्म की प्राप्ति होती है – “महत्यादरजोऽभिषेकम्” बिना सत्संग के ज्ञान की प्राप्ति नही होती – “बिनु सत्संग विवेक न होई “अपने स्वरुप का परिपूर्ण ज्ञान ही एक सत्य वस्तु है। “ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या” एक ब्रह्म ही सत्य है, ब्रह्म सत्य स्वरुप, भेद रहित परिपूर्ण आत्मस्वरुप है । विद्वतजन उसका भगवान वासुदेव , कृष्ण , दामोदर , नारायण, गोविन्द, राम आदि नामो से वर्णन करते हैं , अन्यथा जगत तो मिथ्या है।आत्मा का विवेक रुपी धन एक एक इन्द्रिय लूट लेती है । कोई सन्त मिलने पर संसार रुपी वन से बाहर निकालते हैं।

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